ब्लॉगवाणी, इस बहस को आगे बढ़ाओ!

इस देश में लोकतंत्र है। किसी को इस बात से कहां इनकार हो सकता है। लोकतंत्र इसलिए है क्योंकि यहां हर कोई अपने विचार रख सकता है। बिना किसी लाग-लपेट के। बस इतना सा ध्यान रहे किसी की निजता का हनन न हो। यहां कोई नेता को गाली दे सकता है। अधिकारी से सूचना के अधिकार के तहत जवाब मांग सकता है। अक्सर इन कामों में मीडिया की बड़ी भूमिका रहती है। अक्सर उसके इस अभियान में उसे न्यायपालिका का भी साथ खूब मिलता है। लेकिन बीते कुछ दिनों में ऐसी घटनाएं भी हुई हैं जिनमें यही दोनों पक्ष आपस में गुत्थम गुत्था हो गए।
इस देश में कोई न्यायपालिका पर उंगली नहीं उठा सकता। उठाने वाला न्यायालय की अवमानना का दोषी हो जाता है। ये कैसा लोकतंत्र है? आप सबसे जवाब मांग लेते हैं लेकिन आपसे जवाब मांगा जाय तो अवमानना होती है। तहसील में बैठा जज भी उलटे सीधे काम करके बच सकता है क्योंकि उसके खिलाफ कार्रवाई का हक़ सिर्फ देश के मुख्य न्यायाधीश को है। हमारे ज़ी न्यूज़ के एक पत्रकार बंधु थे उन्होंने कुछ बरस पहले देश के मुख्य न्यायधीश, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के नाम एक निचली अदालत से ग़ैर ज़मानती वारंट जारी करवा लिया था। ज़ाहिर है ये ग़लत ही रहा होगा। लेकिन न्यायपालिका को देखिए उसे जारी करने वाले जज में तो कोई ख़ामी नज़र नहीं आयी उल्टे पत्रकार के कारनामें में उन्हें न्यायपालिका का अपमान दिखने लगा। सर्वोच्च न्यायालय का फरमान आ गया कि पत्रकार ने न्यायपालिका का अपमान किया है। उन्हें माफी मांगनी होगी। गजब है हमारा लोकतंत्र।
हाल ही का एक और वाकया है तीस्ता सीतलवाड़ का। गुजरात दंगों के मामलों की सुनवायी में हो रही देरी पर उन्होंने कुछ कह दिया तो न्यायालय का अपमान हो गया। तीस्ता को दोषी ठहरा दिया गया। ये है हमारा लोकतंत्र जिसका एक पाया आज़ादी के 60 सालों बाद भी अपने भीतर झांकने को तैयार नही हैं। अरे अंग्रेज़ों के समय की व्यस्था तो समझ में आती थी क्योंकि उन्हें राज चलाना था। एक शोषण भरा राज। एक साम्राज्यवादी राज चलाना था। इसलिए जवाबदेही न होना, अपने हित की बात सोचना तो समझ में आता था। पर आज भी उसी ढर्रे पर चलने का क्या औचित्य है? सरकार बदल गई। नेता बदल गए। लोगों को वोट देने का अधिकार मिल गया। गड़बड़ ही सही पर राजनीति भी जवाबदेह है। अधिकारी भी मनमाना नहीं कर सकते। पत्रकारों को तो जब तब सरकारें अपने हिसाब से घुमा फिरा लेती हैं। न्यूज़ चैनल को दो महीने के लिए प्रतिबंधित करने पर कोई मजबूत आवाज़ नहीं उठती यहां। कुछ सवाल हैं जिन्हें एक एक कर लिख रहा हूं क्योंकि ऐसे तो जाने क्या क्या लिखता चला जाउंगा-
* क्या पत्रकार ने जो किया उसके पीछे उसकी मंशा अवमानना की थी या भ्रष्टाचार को सामने लाने की थी?
* एमनेस्टी जैसी संस्था हर साल भारत की जुडिशरी को पुलिस विभाग और भूमि प्रशासन विभाग के बाद सबसे करप्टतम विभाग का तमगा देती है। तब न्यायलय की अवमानना नहीं होती?
* विदेशी संस्था के गिरेबान तक हाथ नहीं पंहुचता तो सब ठीक है अपना कोई कहे तो इज्जत पर आंच आती है?
* अंग्रेज़ी पद्धति पर लोकतांत्रिक भारत में 60 साल बाद न्यायपालिका को चलाने का क्या मतलब है?
* लोकतंत्र जब सबको जवाबदेह होने की बात करता है तो फिर एक हिस्सा इससे अलग क्यों?
* क्या इस सच्चाई से इनकार किया जा सकता है कि न्यायपालिका में जवाबदेही न होने के कारण भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है?
* इसे उजागर करने वाला आपराधी है, या फिर फर्जी वारंट जारी करने वाला?
* आदर्श लोकतंत्र में माफी किसको किससे मांगनी चाहिए? ग़लत को सही से या सही को ग़लत से।
सवाल और भी बनेंगे। क्या आप लोग इस बहस को आगे बढ़ाएंगे? हो सकता है मेरा ये लेख भी न्यायलय को अवमानना लगे। देखते हैं। अगर यही लोकतंत्र का भविष्य है तो फिर क्या किया जा सकता है। अपन भी माफी मांग लेंगे। इतने विद्वान लोग वहां बैठे हैं उन्हें सही ग़लत का अंतर तो पता ही होगा। अगर यही लोकतंत्र का भविष्य है तो यही सही। वैसे अमेरिका भी तो खुद को लोकतंत्र कहता है। वहां तो लोग खूब उंगली उठाते हैं। क्योंकि ये उनके अभिव्यक्ति के अधिकार के दायरे में आता है।   

2 टिप्पणियां

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2 responses to “ब्लॉगवाणी, इस बहस को आगे बढ़ाओ!

  1. bas ek hi savaal poochhana hai, ye http://www.blogvani.com ise kaise aage badha sakta hai?? ise ham ya aap jaise log hi aage badhaa sakta hai.. blogvani to bas use publish matra hi kar sakta hai.. 🙂

  2. chauraha

    ब्लॉगवाणी इसे इस तरह से आगे बढ़ा सकता है कि आज भी लोगों के व्यक्तिगत ब्लॉग पाठकों तक उतनी आसानी से नहीं पहुंचते। ब्लॉगवाणी के माध्यम से ही आज ये संभव हो सका है कि इतनी बड़ी संख्या में ब्लॉग को पाठक मिलते हैं। इसके अलावा किसी बहस को आगे बढ़ाने में एक साथ कई हिस्से काम करते हैं। मशीन के छोटे-बड़े पुर्जों की तरह सबका अपना महत्व होता है। लेकिन बहुत सी चीजे ऐसी होती है जिनका महत्व ज्यादा होता है। कुछ चीजों का कम होता है। साइकल के एक पहिए में नट न हो तो चल सकता है एक पहिया ही न हो तो कैसे साइकल चलेगी। ब्लॉगवाणी की भूमिका पहिए के जैसी है। इसलिए वो इस बहस को आगे बढ़ाने में काफी अहम भूमिका निभा सकता है। बाक़ी आप ने सही कहा कि अंतत: हम आप ही इस बहस को आगे बढ़ाएंगे।

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